अहोई माता व्रत विधि (Ahoi Mata Vrat Vidhi)
व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन उपवास रखना चाहिए| सायं काल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएँ| चाहें तो बिना बनाया चार्ट बाजार से खरीद सकती हैं| सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा प्रारंभ करने से पूर्व ज़मीन को साफ करें| फिर चौक पूरकर, एक लोटे मे जल भरकर एक पटरे पर कलश की तरह रखकर पूजा करें| पूजा के लिए माताएँ पहले से चाँदी का एक अहोई या स्याऊ और चाँदी के दो मोती बनवाकर डोरी मे डलवा लें| फिर रोली, चावल व दूध-भात से अहोई का पूजन करें| जल से भरें लोटे पर स्वास्तिक बना लें| एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्य के अनुसार रूपए का बायना निकालकर रख लें और हाथ में सात दाने गेहूँ लेकर कथा सुनें| कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले मे पहन लें और जो बायना निकाला था, उसे सासूजी का चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें|
इसके बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर भोजन करें| दीपावली के पश्चात किसी दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड से भोग लगाएँ और जल के छीटें देकर आदर सहित स्वच्छ स्थान पर रख दें| जितने बेटे अविवाहित हों, उतनी बार १-१ तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार २-२ चाँदी के दाने अहोई मे डालती जाएँ| ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर बेटों की दीर्घायु करके घर मे मंगल करती हैं| इस दिन ब्राह्माणो को पेठा दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है|
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