Ahoi Ashtami Vrat Katha – अहोई अष्टमी Pooja

अहोई माता का व्रत कथा  Ahoi Ashtami Vrat Katha (2)

प्राचीन समय की बात है| दतिया नामक नगर में चन्द्रभान नाम का एक साहूकार रहता था | उसकी पत्नी का नाम चन्द्रिका था | चन्द्रिका बहुत गुणवानशील, सौंदर्यपूर्ण, चरित्रवान और पतिव्रता स्त्री थी | उनके कई संताने हुईं, लेकिन वे अल्पकाल में ही चल बसीं | संतानों के इस प्रकार मर जाने से दोनों बहुत दुखी रहते थें | पति – पत्नी सोचा करते थे की मरने के बाद हमारी धन संपत्ति का वारिस कौन होगा | एक दिन धन आदि का मोह – त्याग दोनों ने जंगल में वास करने का निश्चय किया | अगले दिन घर – बार भगवान के भरोसे छोड़ के वन को चल पड़े | चलते – चलते कई दिनों बाद दोनों बदरिकाश्रम के समीप एक शीतल कुंड पर पहुंचे | कुंड के निकट अन्न – जल त्याग कर दोनों ने मरने का निश्चय किया | इस प्रकार बैठे – बैठे उन्हें सात दिन हो गएँ | सातवें दिन आकाशवाणी हुई- ” तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो | यह दुःख तुम्हे पूर्व जन्म के पापो के कारण हुआ है | यदि चन्द्रिका अहोई अष्टमी का व्रत रखे तो अहोई देवी प्रसन्न होंगी और वरदान देने आएँगी |

तब तुम उनसे अपने पुत्रो की दीर्घायु मांगना | इसके बाद दोनों घर वापस आ गए | अष्टमी के दिन चन्द्रिका ने विधि- विधान से श्रद्धापूर्वक व्रत किया | रात्रि को पति पत्नी ने स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण की उसी समय उन्हें अहोई देवी ने दर्शन दियें और वर माँगने को कहा | तब चन्द्रिका ने वर मांगा की मेरे बच्चे कम आयु में ही देव लोक चले जाते है | उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दे दें | अहोई देवी ने तथास्तु कहा और अंतरध्यान हो गई | कुछ दिनों के बाद चन्द्रिका को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | जो बहुत विद्वान, प्रतापी और दीर्घायु हुआ |

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जिस स्त्री के बेटा अथवा बेटी का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए | एक थाल में चार – चार पूड़ियां सात जगह रखें| फिर उन पर थोड़ा – थोड़ा हलवा रख दें | थाल में एक साड़ी, ब्लाउज  और सामर्थ्य के अनुसार रूपए रख कर, थाल के चारो ओर हाथ फेरकर सासू जी के चरण स्पर्श करें तथा उसे सादर उन्हें दें | सासूजी तीयल व रूपए स्वयं रख लें एवं हलवा पूरी प्रसाद के रूप में बाँट दें | हलवा पूरी का बायना बहन बेटी के यहाँ भी भेजना चाहिए |

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  1. Francine90 October 22, 2016

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