अहोई माता का व्रत कथा Ahoi Ashtami Vrat Katha (1)
प्राचीन समय की बात है| किसी स्त्री के सात पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था| कार्तिक मास मे दीपावली से पूर्व वह अपने मकान की लिपाई पुताई के लिए मिट्टी लाने जंगल मे गई| स्त्री एक जगह से मिट्टी खोदने लगी| वहाँ सेई की मांद थी, अचानक उसकी कुदालि सेई के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया | यह देख स्त्री दया और करुणा से भर गई| किंतु अब क्या हो सकता था, वह पश्चाताप करती हुई मिट्टी लेकर घर चली गई| कुछ दिनों बाद उसका बड़ा लड़का मर गया, फिर दूसरा लड़का भी, इसी तरह जल्दी ही उसके सातों लड़के चल बसे स्त्री बहुत दुखी रहने लगी| एक दिन वह रोती हुई पास-पड़ोस की बड़ी – बूढ़ियों के पास गई और बोली ” मैंने जान बूझकर तो कभी कोई पाप नहीं किया | हाँ, एक बार मिट्टी खोदते हुए अनजाने में सेई के बच्चे को कुदाली लग गई थी| तब से साल भर भी पूरा नहीं हुआ, मेरे सातो पुत्र मर गएँ ”
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उन स्त्रियों ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा तुमने लोगों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर जो पश्च्चाताप किया है, इससे तुम्हारा आधा पाप धुल गया| अब तुम उसी अष्टमी को भगवती के पास सेई और उसके बच्चों के चित्र बनाकर उनकी पूजा करो| ईश्वर की कृपा से तुम्हारा सारा पाप धुल जायेगा और तुम्हें फिर पहले की तरह पुत्र प्राप्त होंगें ”|
उस स्त्री ने आगामी कार्तिक कृष्ण अष्टमी को व्रत किया और लगातार उसी भांति व्रत-पूजन करती रही| भगवती की कृपा से उसे फिर सात पुत्र प्राप्त हुए | तभी से इस व्रत की परम्परा चल पड़ी |
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